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मैं ज्योतिषी कैसे बन गया!

Updated: Sep 27, 2023

इस कहानी में रोमांच है, बेचैनी है, कौतूहल है| आइटम सांग नहीं है, और फिल्म के अंत में पुलिस भी नहीं आती हीरो को बचाने|

(The English version of this post is here).

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नफरत थी मुझे ज्योतिष से, मैने सपने भी नहीं सोचा था कि एक दिन ज्योतिषी बनूँगा |

थिएटर करता था| बच्चों पर कस के काम करता था, उनका 130% निकलवा लेता था| ऐसी स्टेज परफॉरमेंस दिलवाता था कि एक्टर खुद को भूल जाए स्टेज पर और एक्टर का जादू देखकर ऑडियंस खुद के जीवन की समस्याएं भूल जाएँ| कुछ कुछ फूल की सुगंध सूंघने जैसा, आप दो पल के लिए अपने आप को भूल जाते हो, फूल ही आप हो जाते हो| रात भर सोते नहीं थे हम सब एक्टर लोग, ऐसी एक जुनूनीयत सी चढ़ती थी नाटक बनाने में| पर फिर कुछ अजीब हुआ - मेरे दिल ने मुझे कचोटना शुरू किया| आत्मा बोली "हेमंत, तू खुद तपा नहीं है, पका नहीं है| कैसे तू दूसरों को तपा रहा है? पहले खुद तो भट्टी में नंगे पैर चल ले"| इस आवाज़ ने मुझे झकझोड़ दिया|


उससे पहले बचपन की कहानी

मैं पढ़ने में बहुत तेज़ नहीं था, खेलता कूदता रहता था, पेंटिंग करने का बहुत शौक़ था, स्कूल में 5-10 रैंक आ जाती थी| माता पिता बहुत परेशान हुए जब मैं 10वी कक्षा में आया| पिता स्टेट टॉपर, माता डिस्ट्रिक्ट टॉपर, और उनका बच्चा क्लास टॉपर भी नहीं| उस समय का भारत अलग था, सोशल मीडिया नहीं था, या तो आप डॉक्टर इंजीनियर IAS कुछ बनते या फिर कोई एजेंसी खोलके 'बिजनेस' करते | तो माता पिता एक बूढ़े ट्यूशन टीचर के ले गए (Mr. S.P. Jain, May God bless his soul), उन टीचर को एक गिफ्ट था: वह अपने बच्चों को बहुत प्यार करते थे और वह प्यार ही बच्चों का 100% निकलवा लेता था| उनके उसी प्यार ने पता नहीं मेरा क्या बटन दबाया, कि मेरे अंदर का एक जुनूनी जाग गया|


मैं maths पढ़ने लग गया, एक किताब ख़तम करता तो दूसरी खरीद लाता, बाज़ार की सारी किताबें ख़तम कर दीं| स्कूल में मेरे नंबर बहुत अच्छे आने लग गए, जिन्हे मैं टॉपर समझता था वह आके मुझसे सवाल पूछते और मैं समझाता, यह सब कुछ नया था मेरे लिए | फिर 11th में आया और उन्ही टॉपर से पूछा कि तुम क्या कर रहे हो| वो कोई IIT नामक एग्जाम की तैयारी कर रहे थे, तो मैने सोचा कि मैं भी कर लेता हूँ| मेरी माता एक कुण्डलिनी योग में जाती थीं, मैं मातृभक्त होने के कारण उनके साथ लपक लेता था| Concentration बहुत बढ़िया हो गयी, उपनिषद् गीता वगैरह पर लेक्चर सुनता, बहुत मज़ा आता| जिस उम्र में नए-नए जवान हुए लड़के तेज़ी से मोटरसाइकिल चलाते थे, उसी उम्र में मैं B.Sc. के लेवल के सवाल लगाता| ऐसा लगता था कि मानो ईश्वर ने सब बता रखा है कि सृष्टि चल कैसे रही है, बस मुझे समझते जाना है और उसी जुनूनीयत से मैंने IIT की परीक्षा निकाल ली|


IIT जाने से पहले आइंस्टीन की theory of relativity पढ़ी, बहुत मज़ा आया और लगा कि कॉलेज जाके तो पौ बारह होने वाले हैं | जैसे ठेले पर से 5 रुपैये की आइसक्रीम खाने के शौक़ीन बच्चे को आप Baskin Robbins जाके खड़ा कर दो, तो जो उसकी हालत होगी वही मेरी थी| IIT आते ही मेरे ऊपर घड़ों सर पानी पड़ गया, देश के इतने शानदार बच्चे यहां थे, मुझसे भी बहुत तीक्ष्ण| और इनमे से कई तो इसीलिए IIT आये थे कि उनको 4 साल बाद US जाना था एक 'अच्छी नौकरी करने'| मुझे बाद में पता चला कि अच्छी नौकरी का मतलब बहुत पैसों की नौकरी होता है, डालर में सैलरी वाली| मुझे तो बहुत पैसों कमाने में इंटरेस्ट नहीं था, मैं IIT आया क्योंकि पढ़ना बहुत अच्छा लगता था, सीखना बहुत अच्छा लगता था |


Biotechnology की डिग्री पढ़ रहा था| और मुझे ईश्वर ने ऐसा बनाया है कि कोरी किताबें मुझसे पढ़ी नहीं जातीं, जब तक एप्लीकेशन ना पता चले| मैं टीचर्स को कहता कि आप मुझे लेबोरेटरी में छोड़ दें, मैं रिएक्टर खुद ही बना दूंगा, हाँ बम फट जाए तो हॉस्पिटल ले जाना आप मुझे| वह कहते थे कि भारत सरकार ने रिएक्टर बनाने के पैसे नहीं दिए तो अभी बस किताब पढ़ लो| मेरी उस उम्र की कमज़ोरी थी कि मुझसे ऐसे पढ़ा नहीं जाता था|


कला की देवी का जूनून 

भाग्य पलटा तो थिएटर मिला, पहले एक्टिंग की फिर डायरेक्शन किया| अनेकों सीनियर्स से सीखा, तो आगे जाके कई जूनियर्स को सिखाया| मेरा भीतर बैठा एक गुरु का जन्म हुआ| जब मेरा छोरा बेस्ट एक्टर का अवार्ड लाता था तो मुझे ज्यादा ख़ुशी होती थी बनिस्पत जब मैं वही अवार्ड लाया करता था| इज़्ज़त मिली, नाम मिला (बीड़ू), प्यार मिला, ऐसा लगा कि यही तो है उच्च का लक्ष्य| आप बहुत पैसे कमा लो, उससे क्या हो जाएगा! धन होना आवश्यक है पर वह साधन है, साध्य नहीं| पांच साल इतना झोंका थिएटर/फिल्म्स में कि लगा बस अब जीवन भर यही करना है| IIT के फिल्म क्लब की नींव रखी, दोस्तों के साथ भारत का पहला Youtube वायरल वीडियो बनाया, और एक मित्र द्वारा निर्देशित 90 मिनट की फीचर फिल्म भी बनायी| हरिवंश राय बच्चन जी के इन शब्दों से मैं इत्तेफ़ाक़ रखता था: अलग-अलग पथ बतलाते सब, पर मैं यह बतलाता हूँ | राह पकड़ तू एक चला चल, पा जाएगा मधुशाला ||

मेरी राह थिएटर थी, लेकिन फिर आत्मा से संकोच होने लगा| वही आत्मा जो पहले बोलती थी कि हेमंत डूब जा नाट्य जगत में, अब वही आत्मा मना कर रही थी| आत्मा की आवाज़ सुनने वालों को यह खामियाज़ा भुगतना पड़ता है शायद, उसे अनसुना करना आसानी से हो नहीं पाता| जीवन को लेकर बहुत सवाल भी आने लगे थे, जिस ईश्वर के बारे में इतना पढ़ा सुना: कौन है वो, दिखता कैसा है, मुझमे और उसमे इतनी दूरी क्यों है| संत में ऐसा क्या है, जो मुझमे नहीं होगा| मेरी कुंडली में एक पंडित योग है आत्मकारक से जुड़ा हुआ, वह जाग रहा था पर मुझे ज्योतिष का भान नहीं था बस आगे चलता गया|


अध्यात्म का रास्ता: साधना, शास्त्र, और तपस

गौतम बुद्ध की विपश्यना साधना में घुसा 2007 में| इसके पहले गुरु के लेक्चर सुनने को ही धर्म मान लिया था, अब मेरे जीवन का वह चैप्टर शुरू हुआ जिसमे मैंने तपना शुरू किया| हम आर्टिस्ट लोग थोड़े आराम पसंद हो जाते हैं, मैं वो साधना करता था जिसमे तब तक बैठे रहो जब तक दर्द की सीमा बर्दाश्त के पार ना चली जाए| भीतर कुछ कमज़ोरियाँ थीं, उस पर काम होना शुरू हुआ| लगा कि बच्चा था, अब व्यस्क हो रहा हूँ| दोस्तों के साथ उठना बैठना लगभग छोड़ सा दिया| बस साधना करता, शास्त्र पढता, निष्ठावान होके नौकरी करता पेट पालने के लिए, और शरीर को मज़बूत बनाता| यहां Taekwondo सीखना शुरू किया, जो मेरे बचपन का सपना था, और 6 साल एक गुरु के सानिध्य में लड़ने का गुर सीखा | किताबें पढ़नी शुरू की अलग अलग विषयों पर, 200 किताबें' पढ़ डालीं | पढ़ना और सीखना अपने आप में एक रोमांचक साधना के समान है, जो आशुफलदायी होती है | लेकिन मुझमे एक शंका रही, कि जो मैं शास्त्र में पढ़ रहा हूँ: संसार ईश्वर चलाता है, बहुत ही पैनापन है ईश्वर में, तो ईश्वर बिना गणित के कैसे चला लेता है! हम इंसान यहां पृथ्वी पर गणित के माध्यम से राकेट चाँद पर भेज रहे हैं, और ईश्वर की रचना में गणित ही नहीं है - यह बात हजम नहीं होती थी|


फिर 2014 में मेरी दशा बदली (ज्योतिष में दशा का मतलब होता है एक नयी karmic theme का उदय होना), और मैं यूँ ही ज्योतिष में आ गया| सात साल टेक्नोलॉजी करके burnout सा हो गया था, ऐसे ही एक weekend कोर्स join कर लिया| वहाँ ज्ञान की पिपासा इतनी शांत नहीं हुयी लेकिन भाग्य और गुरु कृपा इतनी प्रबल थी कि एक के बाद एक बेहतरीन गुरु (Thank You Ganesh Sir, Narnauli Sir, Freedom Ji) मुझे सिखाने लगे| ऋषि पाराशर (ऋषि वेद व्यास के डैडी) को पढ़ने की कुंठा उठी तो संयोगवश भारत की एक महान ज्योतिष परम्परा (देवगुरु बृहस्पति सेंटर) के 5 साल के कोर्स में दाखिला ले लिया| वहाँ जो पढ़ा वह वैसा था जैसे कि पतंगे को लौ मिल गयी, जबर मज़ा आ गया| सृष्टि के ऐसे रहस्य जो 20 साल पढ़ लो तो भी ख़तम ना हों, एक ऐसी पढ़ाई जो पढ़ते-पढ़ते विधार्थी को ही बदल दे| इसी सफर में एक महान शख़्सियत (Pandit Sanjay Rath) से मिला जो: ज्योतिष खाते हैं, ज्योतिष पीते हैं, ज्योतिष ही जीते हैं| अपनी फील्ड के मास्टर, चेतना में उच्चस्थ, ब्रूस ली के गुरु ईप मान जैसे| ऐसी महान आत्माओं से संसर्ग हो पाना और सीखना, भाग्य की बात होती है|

संसार में ज्योतिषी का बनना

2017 में लोगों को फलित बताना शुरू किया, बिना फीस के| 2019 में दक्षिणा लेने लगा दो गुरु के सुझाव पर | 2020 में Covid में अपनी छोटे ज्योतिष कार्य को एक नाम दिया (intelastro) और नियमित रूप से जितना भी अभी यह ज्ञान आता है. उससे लोगों का कल्याण करने की भरपूर कोशिश रहती है | माँ का ही ज्ञान है, माँ ही अपने बच्चे को मेरे पास भेज देती है और मैं अपना कर्म कर देता हूँ | अच्छा लगता है सोचकर कि यही मेरे सुकर्म इकट्ठे होंगे और अंत समय में श्री हरी के चरणों में प्रस्तुत होंगे जिसे इस्तेमाल कर वो फिर एक जीवनधारा बनाके मुझे भेंट करेंगे| अभी भी सीखता हूँ क्योंकि सफर बहुत लम्बा है, पर यही मुझे पसंद है: इतना सूक्ष्म ज्ञान है कि जीवन भर सीखता रहूंगा और सृष्टि के गूढ़ रहस्य जानके मर्रूंगा - कितनी सुन्दर मौत होगी वो!

वो जो IIT में नहीं मिला, वह यहां मिल गया| फ़िज़ा में फूल खिले और मैं ज्योतिषी बन गया|

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I was an avid reader of ancient scriptures throughout my life, and thought I knew enough about the links between action and destiny, Until I learnt Astrology. And then my eyes opened like a flash. 
 

I'm a practicing Astrologer and this blog is my ernest attempt to dispel some myths around the subject.

 

I'm discussing topics and themes here that arouse a heated debate amongst intellectuals and scholars alike. 

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